लेखनी डायरी- 30-12-2021 स्कूल की यादें
30/12/2021- स्कूल की यादें
प्यारी सखी डायरी,
आज फिर एक स्कूल का किस्सा सुनाती हूं तुम्हें। स्कूल में हम टीचर्स को लंच ब्रेक में क्लास में बच्चों के साथ ही लंच करना होता है। सिर्फ शनिवार के दिन जब बच्चों की छुट्टी होती थी, उसी दिन हम सब टीचर्स स्टाफ रूम में बैठकर लंच करने को मिलता था। बहुत मज़ा आता था खाने में उस दिन, तरह-तरह के व्यंजन खाने को मिलते थे। वैसे भी हम स्त्रियां रोज़ अपने ही हाथ का बना हुआ खाना खाकर पक जाती हैं और उस दिन दूसरी टीचर्स के हाथ का खाना खाने को मिलता था, तो मज़ा ही आ जाता था। खूब सारे खाने के साथ खूब सारा हँसी मजाक सिर्फ शनिवार को ही करने को मिलता था, बाकी के दिन तो हाय-हैलो ही हो जाय वही बहुत होता था।
एक टीचर की जिंदगी क्या होती है, खासकर आज के युग की टीचर की, यह मैंने टीचर बनने के बाद ही जाना। इतना काम होता है कि खत्म होने को ही नहीं आता। मैं कभी टीचर नहीं बनना चाहती थी क्योंकि मैंने देखा था कि बच्चे टीचर्स का कैसे मजाक उड़ाते हैं। लेकिन जो किस्मत में होना होता है उसे कौन टाल सकता है, तो बस मैं फिर बन गयी टीचर।
बच्चों के साथ मुझे बात करना बहुत पसंद है और मैं उनके साथ सिर्फ सब्जेक्ट से जुडी हुई बातें ही नहीं, कुछ मोटिवेशनल बातें भी करती थी। कभी चैप्टर जल्दी ख़त्म हो गया तो उनके साथ क्विज खेलना, कहानियां सुनाना, ये सब करती थी। सुबह क्लास शुरू होने से पहले 5 मिनट ध्यान करवाती थी, positive affirmations बुलवाती थी। बहुत मजा आता था, इन सब चीजों से एक टीचर और बच्चों के बीच एक अलग तरह का भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।
मैं 6th क्लास की क्लास टीचर थी। लंच ब्रेक में मुझे देखना होता था सबने लंच ख़त्म किया कि नहीं और अगर कोई लंच नहीं लाया तो उसके लिए बिस्कुट मंगवाना और सब बच्चों को बोलना कि उसके साथ लंच शेयर करने के लिए और फिर मैं खाती थी।
खाने के बाद मैं मालगुडी डेज लगा देती थी, स्वामी की कहानी स्मार्ट वलास वाली स्क्रीन पर । मैं और बच्चे खूब मजे से देखते थे।
स्कूल में कोई बड़ा प्लेग्राउंड नहीं था, इसलिए बच्चे लंच ब्रेक में भी क्लास में ही रहते थे और खूब शोर मचाते थे। उनका भी कोई कसूर नहीं था, लंच ब्रेक में तो उनका हक बनता है बात करने का। लेकिन मुझे खाना खाने के समय शांत माहौल पसंद है, शोर के बीच खाया नहीं जाता। यही सोचती थी कभी- कभी यह भी कैसी नौकरी है 5 मिनट लंच भी इंसान शांति से नहीं कर सकता।
एक दिन लंच ब्रेक में उन्हें डांट लगायी और शांति से खाना खाने की एहमियत समझाई और ये भी कि तुम लोगों के शोर से मेरे सिर में दर्द हो जाता है और मैं लंच भी आराम से नहीं कर पाती। उस वक़्त तो चुप हो गए, अगले दिन फिर वही शुरू।
मैंने कुछ नहीं कहा..... चुपचाप लंच करने लगी। तभी क्लास में से एक लड़का उठा और क्लास को समझाने लगा........ टीचर के सिर में दर्द हो जाता है हम सब के शोर से, क्या हम लोग अपनी क्लास टीचर को आराम से खाना नहीं खाने दे सकते। टीचर हमारा कितना ख्याल रखती है, हमें कितना कुछ समझाती हैं और तुम सब हो कि शोर मचा रहे हो इतना। उसकी बातें सुनकर पूरी क्लास चुप हो गयी और बच्चों का यह चिंता देखकर अपने लिए मैं तो एकदम भावुक हो गयी थी।
बच्चों के प्यार और सम्मान से बड़ा टीचर के लिए कुछ नहीं है। याद आते हैं कभी-कभी वो दिन तो मन को अच्छा लगता है।
चलो यादों को लगाते हैं यहीं पूर्णविराम और कर लेते हैं अब कुछ घर के काम।
अलविदा सखी फिर मिलते है।
❤ सोनिया जाधव